ककसार नृत्य: बस्तर की अभुजमरिया जनजाति का सांस्कृतिक उत्सव

ककसार नृत्य: बस्तर की अभुजमरिया जनजाति का सांस्कृतिक उत्सव

भारत की सांस्कृतिक धरोहर विभिन्न जनजातियों के पारंपरिक नृत्यों में समाहित है। छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर ज़िले में बसने वाली अभुजमरिया जनजाति की संस्कृति और परंपराओं में ककसार नृत्य एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस नृत्य का आयोजन मुख्यतः फ़सल और वर्षा के देवता ‘ककसार’ की पूजा के उपरान्त किया जाता है। ककसार नृत्य न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह समाज के युवा वर्ग के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।

ककसार नृत्य का महत्व

ककसार नृत्य का आरंभ ‘ककसार’ देवता की पूजा से होता है, जो फ़सल और वर्षा के देवता माने जाते हैं। अभुजमरिया जनजाति के लोगों का मानना है कि इस नृत्य के माध्यम से वे देवता को प्रसन्न करते हैं, जिससे उनकी फ़सलें अच्छी होती हैं और वर्षा भी समय पर होती है। इस नृत्य का आयोजन मुख्य रूप से फ़सल कटाई के बाद किया जाता है, जब लोग अपने खेतों से अनाज एकत्रित कर चुके होते हैं।

नृत्य की विशेषताएँ

ककसार नृत्य की प्रमुख विशेषता इसका संगीत और घुँघरुओं की मधुर ध्वनि है। नर्तक और नर्तकियाँ अपने पारंपरिक वेशभूषा में सज-धज कर इस नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। इस नृत्य में प्रयोग किए जाने वाले वाद्य यंत्रों में ढोल, मांदल, और अन्य पारंपरिक वाद्य शामिल होते हैं, जो नृत्य की ध्वनि को और भी रोमांचक बनाते हैं।

घुँघरुओं की ध्वनि इस नृत्य की एक और महत्वपूर्ण विशेषता है। नर्तक और नर्तकियाँ अपने पैरों में घुँघरू बांधकर नृत्य करते हैं, जिससे एक तालबद्ध ध्वनि उत्पन्न होती है। यह ध्वनि न केवल नृत्य को और अधिक आकर्षक बनाती है, बल्कि यह नृत्य के हर कदम को भी संगीतबद्ध करती है।

युवाओं के लिए अवसर

ककसार नृत्य का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह युवक और युवतियों को एक दूसरे को जानने और अपना जीवनसाथी चुनने का अवसर प्रदान करता है। नृत्य के दौरान, युवक और युवतियाँ एक दूसरे के साथ नृत्य करते हैं और इस प्रक्रिया में वे एक दूसरे के बारे में अधिक जान पाते हैं। इस प्रकार ककसार नृत्य केवल धार्मिक या सांस्कृतिक नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा

वर्तमान में, आधुनिकता और शहरीकरण के प्रभाव से कई जनजातीय परंपराएँ विलुप्त हो रही हैं। ऐसे में ककसार नृत्य जैसी परंपराओं का संरक्षण और संवर्धन अत्यंत आवश्यक है। यह नृत्य केवल एक नृत्य नहीं, बल्कि एक पूरी संस्कृति और जीवन शैली का प्रतीक है। इसके संरक्षण के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस सांस्कृतिक धरोहर का आनंद ले सकें।

निष्कर्ष

ककसार नृत्य छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले की अभुजमरिया जनजाति की अनमोल सांस्कृतिक धरोहर है। यह नृत्य न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी इसका विशेष महत्व है। ककसार नृत्य के माध्यम से अभुजमरिया जनजाति के लोग अपने देवताओं को प्रसन्न करते हैं, फसल के लिए आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और साथ ही युवाओं के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं। इस नृत्य का संरक्षण और संवर्धन हमारी जिम्मेदारी है, ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर सदा सुरक्षित और संरक्षित रह सके।

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