पंथी नृत्य: गुरु घासीदास के अनुयायियों की आध्यात्मिक अभिव्यक्ति

पंथी नृत्य: गुरु घासीदास के अनुयायियों की आध्यात्मिक अभिव्यक्ति

पंथी नृत्य का महत्व

पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ के सतनामी समाज का एक प्रमुख नृत्य रूप है, जो गुरु घासीदास की स्मृति में किया जाता है। गुरु घासीदास ने समाज में समानता और आध्यात्मिकता का संदेश फैलाया, और उनके अनुयायी हर साल माघ माह की पूर्णिमा को उनकी जयंती मनाते हैं। इस दिन, सतनामी अनुयायी ‘जैतखाम’ की स्थापना करते हैं और पंथी नृत्य में लीन हो जाते हैं, जो उनके आध्यात्मिक समर्पण और उत्साह को प्रदर्शित करता है।

नृत्य पद्धति

पंथी नृत्य एक द्रुत गति का नृत्य है, जिसमें नर्तक अपना शारीरिक कौशल और चपलता दिखाते हैं। इस नृत्य की गति और शारीरिक अभिव्यक्ति दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। नर्तक सफेद रंग की धोती, कमरबंद, और घुंघरू पहनते हैं, और मृदंग एवं झांझ की लय पर ताल मिलाते हैं। प्रारंभ में नृत्य की गति धीमी होती है, जो धीरे-धीरे तेज हो जाती है। जैसे-जैसे गीत और मृदंग की धुन तेज होती जाती है, नर्तकों की गति और मुद्राएं भी तेज हो जाती हैं।

मुख्य नर्तक पहले गीत की कड़ी उठाता है, जिसे अन्य नर्तक दोहराते हैं और उसी के साथ नृत्य की शुरुआत होती है। गीत के बोल और अंतरा के साथ ही नृत्य की मुद्राएं बदलती रहती हैं, और बीच-बीच में मानव मीनारों की रचना और अद्भुत कारनामे दिखाए जाते हैं। यह दृश्य अत्यंत मनोरम होता है और दर्शकों को आश्चर्यचकित कर देता है।

वेशभूषा और वाद्ययंत्र

पंथी नृत्य की वेशभूषा बहुत सादी होती है। नर्तक सफेद बनियान, साधारण धोती, गले में हार, और सिर पर सादा फेटा पहनते हैं। माथे पर तिलक लगाकर वे नृत्य करते हैं। इस साधारण वेशभूषा के पीछे एक गहरा विचार है कि नर्तक बिना किसी बाहरी आडंबर के अपने नृत्य को पूरा कर सकें। हालांकि, समय के साथ इस वेशभूषा में कुछ परिवर्तन आए हैं, और अब रंगीन कमीज और जैकेट का भी प्रयोग किया जाने लगा है।

नृत्य के दौरान मांदर और झांझ प्रमुख वाद्ययंत्र होते हैं। इन वाद्ययंत्रों की ध्वनि नृत्य की लय और ताल को निर्धारित करती है। आधुनिक समय में बेंजो, ढोलक, तबला और केसियो जैसे वाद्ययंत्रों का भी प्रयोग होने लगा है, जिससे नृत्य में और अधिक विविधता और जीवंतता आ गई है।

नृत्य का समापन और प्रभाव

पंथी नृत्य का समापन अत्यंत तीव्र गति के साथ होता है, जिससे नर्तकों और दर्शकों दोनों में उत्साह की लहर दौड़ जाती है। नर्तकों की तेजी से बदलती मुद्राएं और देहगति दर्शकों को रोमांचित कर देती हैं। नृत्य के अंत में गुरु घासीदास बाबा का जयकारा लगाया जाता है, जिससे समर्पण और भक्ति का भाव और भी गहरा हो जाता है।

पंथी नृत्य न केवल एक नृत्य रूप है, बल्कि यह सतनामी समाज की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान का प्रतीक भी है। यह नृत्य अनुयायियों के लिए अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने का एक माध्यम है। इस नृत्य के माध्यम से गुरु घासीदास के उपदेशों और विचारों को जीवंत रखा जाता है, और यह समाज के भीतर एकता और सामंजस्य को बढ़ावा देता है।

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