कर्मा नृत्य: छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर

कर्मा नृत्य: छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर

कर्मा नृत्य छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। यह नृत्य विशेष रूप से भादों मास की एकादशी को मनाया जाता है, जब करमवृक्ष की शाखा को घर के आंगन या चौगान में रोपित किया जाता है। नवान्न समर्पित करने के बाद ही इसे खाने की शुरुआत होती है। इस नृत्य को नई फसल की खुशी में किया जाता है और इसे आदिवासी समाज के बीच एक महत्वपूर्ण उत्सव के रूप में देखा जाता है।

संस्कृति का प्रतीक

कर्मा नृत्य को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है: बैगा कर्मा, गोंड़ कर्मा, और भुंइयाँ कर्मा। यह नृत्य छत्तीसगढ़ के विभिन्न आदिवासी समुदायों में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। ‘करमसेनी देवी’ का अवतार विभिन्न गीतों में गोंड और घसिया के घर में माना जाता है। इस नृत्य में स्त्री और पुरुष दोनों भाग लेते हैं और यह वर्षा ऋतु को छोड़कर सभी ऋतुओं में नाचा जाता है।

कर्मा नृत्य के प्रकार

कर्मा नृत्य के कई प्रकार हैं जिनमें झूमर, खेमटा, लंगड़ा, और ठाढ़ा प्रमुख हैं। झूमर नृत्य में झूम-झूम कर नाचा जाता है जबकि खेमटा नृत्य में लहराते हुए कमर लचकाई जाती है। लंगड़ा नृत्य एक पैर को झुकाकर किया जाता है, और ठाढ़ा नृत्य खड़े होकर किया जाता है।

वस्त्र और वाद्ययंत्र

कर्मा नृत्य में मांदर और झांझ-मंजीरा जैसे वाद्ययंत्र प्रमुख होते हैं। इसके अलावा टिमकी ढोल, मोहरी आदि का भी प्रयोग होता है। नर्तक मयूर पंख का झाल पहनते हैं और पगड़ी में मयूर पंख की कलगी खोंसते हैं। अन्य आभूषणों में रुपया, सुताइल, बहुंटा और करधनी शामिल होते हैं। नृत्य के दौरान युवक-युवतियाँ चूड़ा और बहुटा पहनते हैं, जो उनके नृत्य की लय में सुन्दरता का समावेश करता है।

संगीत और नृत्य शैली

कर्मा नृत्य में संगीत की योजना बहुत ही व्यवस्थित होती है। इसमें गीता के टेक और समूह गान प्रमुख होते हैं। गीतों में ईश्वर की स्तुति से लेकर शृंगार परक गीत शामिल होते हैं। मांदर और झांझ की लय पर नर्तक वृत्ताकार नृत्य करते हैं, जिसमें लचक-लचक कर भाँवर लगाते, हिलते-डुलते, झुकते और उठते हैं।

कर्मा नृत्य छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है। इस नृत्य के माध्यम से समुदाय की एकता, धार्मिक आस्था और जीवन की खुशियों का उत्सव मनाया जाता है।

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