छत्तीसगढ़ का राउत नाचा: दिवाली के दौरान शौर्य और श्रृंगार का अद्वितीय लोक नृत्य

“छत्तीसगढ़ का राउत नाचा, दिवाली के दौरान किया जाने वाला पारंपरिक लोक नृत्य है। जानें इसके शौर्य, श्रृंगार, और सांस्कृतिक महत्व के बारे में।”

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विविधता और लोक परंपराएं अपनी अनूठी छवि पेश करती हैं, और उनमें से एक प्रमुख परंपरा है “राउत नाचा”। यह एक पारंपरिक लोक नृत्य है जो विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के यादवों (राउत) द्वारा दिवाली के अवसर पर किया जाता है। आइए जानते हैं इस अद्वितीय नृत्य के बारे में विस्तार से।

राउत नाचा: परंपरा और महत्त्व

राउत नाचा छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा है। यह नृत्य दिवाली (देव प्रबोधनी एकादशी से एक पखवाड़े तक) के समय आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर लोग विशेष वेशभूषा में सजे हुए लाठियाँ (लकड़ी) लेकर टोली में गाते और नाचते हैं। इस नृत्य की विशेषता इसके शौर्य और श्रृंगार में छिपी होती है।

नृत्य की विशेषताएँ

राउत नाचा न केवल एक नृत्य है बल्कि एक धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान भी है। इस नृत्य में शामिल लोग दोहा गाते हुए तेज गति से नृत्य करते हैं। पैरों की थिरकन और लय का विशेष महत्व होता है। नृत्य के दौरान, गांव के प्रत्येक घर के मालिक से आशिर्वाद लिया जाता है।

नृत्य की शुरुआत और वाद्य यंत्र

राउत नाचा की शुरुआत देवी-देवताओं की वंदना से होती है। इसके बाद, यह नृत्य विभिन्न वाद्य यंत्रों जैसे मोहरी, गुदरुम, निशान, ढोल, डफड़ा, टिमकी, झुमका, झुनझुना, झांझ, मंजीरा, मादर, मृदंग, और नगाड़ा के साथ होता है। ये वाद्य यंत्र नृत्य की रिदम और उत्साह को और भी बढ़ा देते हैं।

राउत नाचा में भागीदारी

इस नृत्य में केवल पुरुष भाग लेते हैं, जिसमें बाल, किशोर, युवा, और प्रौढ़ सभी शामिल होते हैं। यह नृत्य न केवल एक सांस्कृतिक परंपरा है बल्कि यह समुदाय के सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूत करता है।

राउत नाचा छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक संपदा का एक अनमोल हिस्सा है। यह नृत्य शौर्य और श्रृंगार का अद्वितीय मिश्रण पेश करता है, और इसका आनंद हर वर्ष दिवाली के दौरान लिया जाता है। इस नृत्य की विशेषता और परंपरा इसे अन्य लोक नृत्यों से अलग बनाती है, और यह छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान को और भी मजबूत करती है।

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