रामनवमी से प्रारंभ होने वाले डभरा चंदरपुर का मेला दिन की गरमी में ठंडा पड़ा रहता है लेकिन जैसे-जैसे शाम ढलती है, लोगों का आना शुरू होता है और गहराती रात के साथ यह मेला अपने पूरे शबाब पर आ जाता है।
संपन्न अघरिया कृषकों के क्षेत्र में भरने वाले इस मेले की खासियत चर्चित थी कि यह मेला अच्छे-खासे ‘कॅसीनो’ को चुनौती दे सकता था। यहां अनुसूचित जाति के एक भक्त द्वारा निर्मित चतुर्भुज विष्णु का मंदिर भी है।
कौड़िया का शिवरात्रि का मेला प्रेतबाधा से मुक्ति और झाड़-फूंक के लिए जाना जाता है।
कुछ साल पहले तक पीथमपुर, शिवरीनारायण, मल्हार, चेटुआ आदि कई मेलों की चर्चा देह-व्यापार के लिए भी होती थी। कहा जाता है कि इस प्रयोजन के मुहावरे ‘पाल तानना’ और ‘रावटी जाना’ जैसे शब्द, इन मेलों से निकले हैं।
रात्रिकालीन मेलों का उत्स अगहन में भरने वाले डुंगुल पहाड़ (झारखंड-जशपुर अंचल) के रामरेखा में दिखता है। इस क्षेत्र का एक अन्य महत्वपूर्ण व्यापारिक आयोजन बागबहार का फरवरी में भरने वाला मेला है।