News

राजिम मेला प्रसंग : जानिए राजिम मेला के रोचक तथ्य

राजिम छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे छत्तीसगढ़ का “प्रयाग” भी कहते हैं। यहाँ के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं। प्रतिवर्ष यहाँ पर माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है।

ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक पूरी नहीं होती जब तक राजीव लोचन और कुलेश्वर नाथ महादेव के दर्शन नहीं कर लिए जाते। यही कारण है कि इस मेले का खास महत्व है।

राजिम मेला के रोचक तथ्य

राजिम मेला ‘श्री राजीवलोचन कुंभ’ के नाम से आयोजित होता है। माघ-पूर्णिमा पर भरने वाले इस मेले का केन्द्र राजिम होता है।

महानदी, पैरी और सोंढुर त्रिवेणी संगम पर नदी के बीचों-बीच स्थित कुलेश्वर महादेव और ठाकुर पुजारी वाले वैष्णव मंदिर राजीवलोचन के साथ मेले का विस्तार पंचक्रोशी क्षेत्र में पटेवा (पटेश्वर), कोपरा (कोपेश्वर), फिंगेश्वर (फणिकेश्वर), चंपारण (चम्पकेश्वर) तथा बम्हनी (ब्रह्मणेश्वर) तक होता है। इन शैव स्थलों के कारण मेले की अवधि पूरे पखवाड़े, शिवरात्रि तक होती है, लेकिन मेले की चहल-पहल, नियत अवधि के आगे-पीछे फैल कर लगभग महीने भर होती थी।

राजिम मेला 
राजिम मेला

राजिम मेला प्रसंग

राजिम मेला के एक प्रसंग से उजागर होता मेलों का रोचक पक्ष यह कि मेले में एक खास खरीदी, विवाह योग्य लड़कियों के लिए, पैर के आभूषण-पैरी की होती थी। महानदी-सोढुंर के साथ संगम की पैरी नदी को पैरी आभूषण पहन कर पार करने का निषेध प्रचलित है। इसके पीछे कथा बताई जाती है कि वारंगल के शासक अन्नमराज से देवी ने कहा कि मैं तुम्हारे पीछे-पीछे आऊंगी, लेकिन पीछे मुड़ कर देखा तो वहीं रुक जाऊंगी। राजा आगे-आगे, उनके पीछे देवी के पैरी के घुंघरू की आवाज दन्तेवाड़ा तक आती रही, लेकिन देवी के पैर डंकिनी नदी की रेत में धंसने लगे। घुंघरू की आवाज न सुन कर राजा ने पीछे मुड़ कर देखा और देवी रुक गईं और वहीं स्थापित हो कर दंतेश्वरी कहलाईं। लेकिन कहानी इस तरह से भी कही जाती है कि देवी का ऐसा ही वरदान राजा को उसके राज्य विस्तार के लिए मिला था और बस्तर से चल कर बालू वाले पैरी नदी में पहुंचते, देवी के पैर धंसने और आहट न मिलने से राजा ने पीछे मुड़ कर देखा, इससे उसका राज्य विस्तार बाधित हुआ। इसी कारण पैरी नदी को पैरी पहन कर (नाव से भी) पार करने की मनाही प्रचलित हो गई। संभवतः इस मान्यता के पीछे पैरी नदी के बालू में पैर फंसने और नदी का अनिश्चित प्रवाह और स्वरूप ही कारण है।

Get real time updates directly on you device, subscribe now.