छत्तीसगढ़ में नल वंश: सम्पूर्ण विवरण और पुरातात्विक सामग्री
1. पुरातात्विक सामग्री
नल वंश से सम्बन्धित पुरातात्विक सामग्री बहुत कम है। समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में महाकान्तर के राजा व्याघ्रराज का उल्लेख मिलता है, जिसे कुछ इतिहासकार नल वंश से जोड़ते हैं।
प्रमुख अभिलेख:
- भवदत्त वर्मा का ऋद्धिपुर ताम्रपत्र
- पोड़ागढ़ शिलालेख
- अर्थपति का केशरिबेढ़ ताम्रपत्र
- पांडियापाथर लेख
- विलासतुंग का राजिम शिलालेख
2. नल वंश का पौराणिक सम्बन्ध
नल वंशीय अपना सम्बन्ध पौराणिक नल से स्थापित करते हैं, लेकिन अभिलेखीय साक्ष्य इसकी पुष्टि नहीं करते। वंश का सबसे पहला शासक वराहराज था।
3. वराहराज और भवदत्त वर्मा
वराहराज (400-440 ई.) की स्वर्ण मुद्राएं एडेगा से प्राप्त हुई हैं। इसके बाद भवदत्त वर्मा (440-460 ई.) ने वाकाटकों को हराया और बस्तर तथा कोसल क्षेत्र में साम्राज्य विस्तार किया।
4. अर्थपति और केसरिबेढ़ ताम्रपत्र
भवदत्त वर्मा के बाद अर्थपति शासक बना। इसके केसरिबेढ़ ताम्रपत्र से जानकारी मिलती है कि वह नल वंश की प्राचीन राजधानी पुष्करी में वापस आया था। इसके समय में वाकाटक नलों पर पुनः आक्रमण कर विजयी हुए।
5. पोड़ागढ़ शिलालेख और स्कंदवर्मा
अर्थपति के बाद उसका भाई स्कंदवर्मा शासक बना। पोड़ागढ़ शिलालेख से पता चलता है कि उसने नष्ट हुई पुष्करी को पुनः स्थापित किया।
6. विलासतुंग और राजिम शिलालेख
विलासतुंग का शासनकाल (700-740 ई.) राजिम शिलालेख से ज्ञात होता है। उसने राजीव लोचन मंदिर का निर्माण करवाया। इसके पश्चात पृथ्वीव्याघ्र और भीमसेन नामक नल शासकों का उल्लेख मिलता है।
7. अन्तिम शासक और नल वंश का पतन
नल वंश के अन्तिम शासक नरेंद्र धवल (935-960 ई.) थे। इसके बाद दंडकारण्य क्षेत्र में नाग और सोमवंशी राजाओं ने नल वंश का स्थान लिया।
नल वंश के प्रमुख शासक
- शिशुक (290-330 ई.): वंश के प्रारंभिक शासक
- वराहराज (330-370 ई.): वास्तविक संस्थापक
- भवदत्त वर्मा (440-460 ई.): प्रमुख शासक
- अर्थपति: पुष्करी में वापसी, वाकाटक संघर्ष
- स्कंदवर्मा: पुष्करी का पुनर्निर्माण
- विलासतुंग (700-740 ई.): राजीव लोचन मंदिर का निर्माण
- भीमसेन (900-925 ई.): शैव उपासक, ताम्रपत्र के प्रमाण
पुरातात्विक स्रोत
- ऋद्धिपुर ताम्रपत्र
- पोड़ागढ़ शिलालेख
- केसरिबेढ़ ताम्रपत्र
- पांडियापाथर लेख
- राजिम शिलालेख
- एडेगा मुद्राएं