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छत्तीसगढ़ जनजातीय नृत्य परंपराएँ : सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा

मुख्य अंश

छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातीय नृत्य परंपराएँ उसकी सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनमें विभिन्न जनजातियों की सांस्कृतिक धरोहर, जीवनशैली और प्रकृति के साथ उनके जुड़ाव की झलक मिलती है। आइए, छत्तीसगढ़ के कुछ प्रमुख जनजातीय नृत्यों पर विस्तृत दृष्टि डालें:

छत्तीसगढ़ जनजातीय नृत्य परंपराएँ : सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा

1. गेंड़ी नृत्य

  • क्षेत्र: बस्तर
  • जनजाति: मारिया गौड़ आदिवासी
  • यह नृत्य छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोकनृत्यों में से एक है, जिसमें नर्तक लकड़ी की ऊंची गेंड़ी पर संतुलन बनाकर नृत्य करते हैं। नृत्य में कौड़ी से सजी पेटी और पारंपरिक वाद्य यंत्रों जैसे मांदर, शहनाई, डफ, टिमकी का प्रयोग होता है। यह नृत्य जून से अगस्त के बीच किया जाता है और नर्तकों की शारीरिक संतुलन की कला इसमें दिखाई देती है।

2. सरहुल नृत्य

  • क्षेत्र: सरगुजा, जशपुर, धरमजयगढ़
  • जनजाति: उरांव
  • यह नृत्य चैत्र मास की पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित किया जाता है और प्रकृति पूजा से जुड़ा हुआ है। सरना वृक्षों की पूजा के साथ यह नृत्य प्रारंभ होता है, जिसमें महादेव और देव पितरों की स्तुति की जाती है। नृत्य के दौरान आदिवासी शराब का सेवन भी करते हैं, और रात के बढ़ने के साथ नृत्य की गति भी बढ़ती जाती है।

3. पंडवानी नृत्य

  • क्षेत्र: छत्तीसगढ़
  • जनजाति: सामान्य
  • पंडवानी नृत्य एक एकल प्रस्तुति वाली लोककला है, जिसमें महाभारत के पांडवों की गाथा को नृत्य और गायन के साथ प्रस्तुत किया जाता है। इसमें एकतारा का प्रयोग होता है और नर्तक महाभारत की कहानियों का अभिनय भी करते हैं। इस नृत्य शैली को तीजनबाई और झाडूराम देवांगन जैसे कलाकारों ने विशेष पहचान दिलाई है।

4. सैला नृत्य

  • जनजाति: गोंड/बैगा
  • यह नृत्य डंडा नृत्य के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें नर्तक डंडों के साथ नृत्य करते हैं। यह नृत्य विशेष रूप से फसल कटाई के बाद किया जाता है।

5. ककसार नृत्य

  • जनजाति: मुड़िया
  • यह नृत्य साल में एक बार किया जाता है और इसमें उत्सव की भावना झलकती है। इसमें युवा पुरुष और महिलाएं साथ में नृत्य करते हैं, जिससे यह सामुदायिक सहभागिता का प्रतीक बन जाता है।

6. गौर नृत्य

  • जनजाति: दंडामी माड़िया
  • यह माड़िया जनजाति का प्रमुख नृत्य है, जो मुख्य रूप से शिकार और पुरुषत्व का प्रतीक माना जाता है। इसमें नर्तक पारंपरिक वेशभूषा पहनकर ढोल की थाप पर नृत्य करते हैं।

7. बिलम नृत्य

  • जनजाति: बैगा
  • दशहरे के समय यह नृत्य बैगा जनजाति द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यह नृत्य पुरुषों और महिलाओं द्वारा मिलकर किया जाता है और इसमें ग्रामीण जीवन की खुशी की झलक मिलती है।

8. दमनच नृत्य

  • जनजाति: पहाड़ी कोरवा
  • यह नृत्य पहाड़ी कोरवा जनजाति द्वारा उत्सवों और विशेष अवसरों पर किया जाता है। इसमें पारंपरिक वेशभूषा और संगीत का समावेश होता है।

9. हुलकीपाटा और घोटुलपाटा नृत्य

  • जनजाति: मुड़िया
  • मुड़िया जनजाति के ये नृत्य विशेष रूप से सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर किए जाते हैं, जिसमें नर्तक अपने जीवन के विविध पहलुओं को नृत्य के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं।

10. दोरला नृत्य

  • जनजाति: दोरला
  • यह नृत्य दोरला जनजाति द्वारा पर्व-त्योहार, विवाह और अन्य सामाजिक अवसरों पर किया जाता है। इसमें समूह नृत्य की विशेषता होती है, जिसमें पुरुष और महिलाएं एक साथ भाग लेते हैं।

छत्तीसगढ़ के ये जनजातीय नृत्य न केवल सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करते हैं, बल्कि इनकी विविधता और परंपराएं इस क्षेत्र की सामाजिक संरचना और धार्मिक आस्थाओं को भी प्रकट करती हैं।