कहावत का शाब्दिक अर्थ है ‘लोक की उक्ति’। इस अर्थ से कहावत का क्षेत्र व्यापक हो जाता है, जिसे हिन्दी साहित्य कोश में इस प्रकार व्यक्त किया गया है “लोकोक्ति में कहावतें सम्मिलित हैं, लोकोक्ति की सीमा में पहेलियाँ भी आ जाती हैं।’ परन्तु आज ‘लोकोक्ति’ शब्द ‘कहावत’ या प्रोवर्ष के पर्याय के रूप में रूढ हो चला है। इसके अंतर्गत पहेलियाँ नहीं रखी जाती
छत्तीसगढ़ी कहावतें सदियों से छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं। ये कहावतें जीवन के अनुभवों, समाज की सच्चाइयों और लोकजीवन की भावनाओं को सरल और प्रभावी ढंग से व्यक्त करती हैं। छत्तीसगढ़ी समाज में कहावतें न सिर्फ़ आम बोलचाल का हिस्सा हैं, बल्कि जीवन की कई सच्चाइयों और नैतिकताओं को संक्षिप्त और सटीक रूप में सामने रखती हैं।
छत्तीसगढ़ी कहावतें: छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति का दर्पण
छत्तीसगढ़ी कहावतें अपनी सरलता और गहरे अर्थ के लिए जानी जाती हैं। यहाँ कुछ प्रमुख छत्तीसगढ़ी कहावतें और उनका हिंदी अर्थ दिए गए हैं:
- अँधवा म कनवा राजा (अंधों में काना राजा)
जब सभी कमजोर या अक्षम हों, तो थोड़ा सक्षम व्यक्ति भी नेता बन जाता है। - जोन गरजथे तोन बरसे नहीं (गरजने वाले बरसते नहीं)
जो लोग बहुत शोर मचाते हैं, वे अक्सर कोई काम नहीं करते। - अपन हाथ जगन्नाथ (अपना हाथ जगन्नाथ)
खुद पर भरोसा रखने की प्रेरणा देती है कि अपनी मेहनत से ही सब कुछ संभव है। - करेला तेमा नीम चढ़य (एक तो करेला उस पर नीम चढ़ा)
जब पहले से बुरी स्थिति और भी खराब हो जाती है। - जेखर लाठी तेखर भैंस (जिसकी लाठी उसकी भैंस)
ताकतवर ही नियम बनाता है, अधिकार उसी के पास होता है जिसके पास शक्ति हो।
छत्तीसगढ़ी कहावतों का महत्व
छत्तीसगढ़ी कहावतें एक प्रकार से लोकजीवन का दर्पण हैं, जो समाज के तात्कालिक अनुभवों, मान्यताओं और मूल्यवर्धन को प्रतिबिंबित करती हैं। ये कहावतें न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि लोगों को जीने की कला भी सिखाती हैं। चाहे वह सामाजिक व्यवस्था हो, पारिवारिक रिश्ते हों, या व्यक्तिगत संघर्ष, इन कहावतों के माध्यम से समाज में व्याप्त नियमों और वास्तविकताओं को समझा जा सकता है।
क्यों हैं छत्तीसगढ़ी कहावतें आज भी प्रासंगिक?
समय चाहे कितना भी बदल जाए, छत्तीसगढ़ी कहावतें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी पहले थीं। ये कहावतें हमें हमारे समाज की जड़ों से जोड़े रखती हैं और लोकसाहित्य का अभिन्न हिस्सा हैं। वर्तमान में भी लोग इन कहावतों का उपयोग विभिन्न संदर्भों में करते हैं, चाहे वह हास्य हो, व्यंग्य हो, या जीवन की किसी गंभीर स्थिति का वर्णन।
छत्तीसगढ़ी की बहुप्रचलित कहावतें इस प्रकार हैं –
- अँधरा पादै भैरा जोहारै (अंधा पादे, बहरा जुहार करे)
- अँधरा खोजै दू आँखी (अंधा खोजे दो आँख)
- अँधवा म कनवा राजा (अँधों में काना राजा)
- अक्कल बडे़ के भैंस (अक्ल बड़ी की भैंस)
- अड़हा बइद प्रान घात (अनाडी वैद्य प्राण घातक होता है॥
- अपन आँखी म नींद आथै (अपनी आँखों में नींद आती है।)
- अपन कुरिया घी के पुडिया (अपना घर स्वर्ग समान)
- अपन मराए काला बताए (अपनी समस्या किसे बताएँ)
- अपन मरे बिन सरग नि दिखय (अपने मरे बिना स्वर्ग दिखायी नहीं देता ॥)
- अपन हाथ जगन्नाथ (अपना हाथ जगन्नाथ)
- अपन गली म कुकुर घलो बघवा कर नरियाथे (अपनी गली में कुत्ता भी शेर की तरह दहाड़ता है।)
- आए नाग पूजै नहीं, भिंभोरा पूजे जाए (आए हुए नाग की पूजा न करके उसके बिल की पूजा करने के लिए जाता है।)
- आगू के करु बने होथे (पहले की कड़वाहट बाद की कड़वाहट से अच्छी)
- आप रुप भोजन, पर रुप सिंगार (आप रुचि भोजन, पर रूचि श्रृंगार)
- आए न जाए चतुरा कहाए (आता जाता कुछ नहीं चतुर कहाता है)
- उपर म राम-राम, भितर म कसइ काम (मुख में राम बगल में छूरी)
- एक कोलिहा हुँआ-हुँआ त सबो कोलिहा हुँआ-हुँआ (एक सियार हुँआ बोला तो सभी सियार हुँआ बोले)
- एक जंगल म दू ठिन बाघ नि रहय (एक जंगल में दो शेर नहीं रह सकते)
- एक ठन लईका गाँव भर टोनही (एक अनार सौ बिमार)
- एक ला माँ एक ला मौसी (भाई भतीजावाद करना)
- एक हाथ के खीरा के नौ हाथ बीजा (तिल का ताड़, राई का पहाड़)
- कथरी ओढे घी खाए (खाने के दांत अलग दिखाने के अलग)
- कतको करय गुन के न जस (कितना भी करें गुण का न यश का)
- कौआ के सरापे गाय नि मरय (कौंआ के श्राप से गाय नहीं मरती)
- करिया आखर भैंस बरोबर (काला अक्षर भैंस बराबर)
- करेला तेमा नीम चढ़य (एक तो करेला उस पर नीम चढ़ा)
- कहाँ गे कहूँ नहीं काय लाने कछु नहीं (कहाँ गए कहीं नहीं क्या लाए कुछ नहीं)
- कहाँ राजा भोज कहाँ गंगवा तेली (कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली)
- नंगरा नहाही काला अउ निचोही काला (नंगा नहाएगा क्या और निचोडेगा क्या )
- का माछी मारे का हाथ गंधाए (मक्खी मारकर हाथ गंदा करना)
- गरियार बइला रेंगथे त मेड्बवा ल फोर के (आलसी कुछ करता नहीं, करता है तो नुकसान करता है)
- बाम्हन कुकुर नाउ, जात देख गुर्राउ (प्रतिद्धन्दी से ईष्या करना)
- कुकुर के पूछी जब रही टेडगा के टेडगा (कुत्ते की पूँछ कभी सीधी नहीं हो सकती)
- कुकुर भूकय हजार हाथी चलय बजार (कुत्ते भोंके हजार, हाथी चले बाजार)
- कोरा म लइका गली खोर गोहार (बगल में बच्चा गाँव भर हल्ला)
- खसू बर तेल नहीं घुडसार बर दिया (खुजली मे लगाने को तेल नहीं पर घुडसाल में दिया जलाने के लिए तेल चाहिए)
- गंगा नहाए ले कुकुर नई तरय (गंगा स्नान करने से कुत्ते को मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता)
- गाँव के कुकुर गाँवे डहार (गाँव का कुत्ता गाँव की ओर से ही भोंकता है)
- गाँव के जोगी जोगड़ा आन गाँव के सिद्ध (गाँव का जोगी जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध)
- गाँव गे गवार कहाए (गाँव गए गवार कहाए)
- गाँव भर सोवै त फक्कड रोटी पोवै (गाँव के सभी लोग सो जाते हैं तो फक्कड रोटी बनाता है)
- बढई के खटिया टुटहा के टुटहा (दिया तले अँधेरा)
- गुरु तो गुड रहिगे चेला शक्कर होगे (बाप से बेटा सवा शेर)
- घर के भेदी लंका छेदी (घर का भेदी लंका ढाए)
- घर के कुकरी दार बरोबर (घर की मुर्गी दाल बराबर)
- घानी कस किंजरत हे (कोल्हू का बैल बनना)
- घी देवत बामहन टेड़वाए (बेवजह नखरे करना)
- चट मंगनी पट बिहाव (चट मंगनी पट विवाह)
- चटकन के का उधार (थप्पड की क्या उधारी,/क्वथनं किं दरिद्रम)
- चमड़ी जाए फेर दमड़ी झन जाए (चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए)
- चार बेटा राम के कौडी के न काम के (चार बेटे राम के कौडी के न काम के)
- चिर म कौंआ आदमी म नउँवा (पक्षियों में कौंआ और मनुष्यों मे नाई)
- चोर मिलय चंडाल मिलय फेर दगाबाज झिन मिलय (चोर मिले चंडाल मिले किन्तु दगाबाज न मिले)
- सिधवा के डौकी सबके भौजी (सीधे व्यक्ति की पत्नी सभी की भाभी)
- छानी म चघके होरा (छप्पर पर चढकर होला है)
- जइसे जइसे घर दुवार तइसे तइसे फइरका जइसन दाई-ददा तइसन तइसन लइका (जैसा घर वैसा दरवाजा, जैसे मां-बाप वैसे बच्चे)
- हूम देके हाथ जरोए (भलाई का जमाना नहीं)
- मया के मारे मरे त दूनो कुला जरे (अधिक प्रेम करने से शत्रुता हो जाती है।)
- जिहाँ गुर तिहाँ चाँटी (जहाँ गुड वहाँ चींटी)
- जेखर घर डउकी सियान तेखर घर मरे बियान (जिसके घर में पत्नी की चलती हो वहाँ पति की मृत्यु हो जाती है)
- जेखर बेंदरा तेखरे ले नाचथे (जिसका बंदर उसी से नाचता है)
- जेखर लाठी तेखर भैंस (जिसकी लाठी उसकी भैंस)
- जइटसन बोही तहसन लूही (जैसा बोएगा वैसा काटेगा)
- जोन गरजथे तोन बरसे नहीं (गरजने वाले बरसते नहीं)
- जोन तपही तोन खपबे करहि (जो अत्याचार करेगा वह नष्ट होगा)
- झांठ उखाने ले मुर्दा हरू नी होय (झांट उखाडने से मुर्दा हल्का नहीं होता)
- टठिया न लोटिया फोकट के गौंटिया (थाली न लोटा मुफ्त के जमीदार)
- टिटही के थामें ले सरग नि रुकय (अकेला चना भाड्ड नहीं फोड सकता)
- रद्दा के खेती अउ रांडी के बेटी (रास्ते की फसल और विधवा की पुत्री का कोई रखवाला नहीं होता)
- राजा के अगाड़ी अउ घोड़ा के पिछाडी (राजा की अगाड़ी अउ घोड़ा की पिछाड़ी)
- चोदरी डउकी के बारी ओखी (वेश्या औरत के अनेंक बहाने)
- तइहा के गोठ बइहा ले गे (गई बात गणपत के हाथ)
- तिन म तेरा म ढोल बजावै डेरा म (कबीरा खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर)
- थूक म लाडू नि बंधावय (थूक थूक से लड्डू नहीं बंधता है।)
- दाँत हे त चना नहीं, चना हे त दाँत नहीं ( दाँत है तो चना नहीं चना है तो दाँत नहीं)
- दुब्बर बर दू असाड (गरीबी में आटा गिला)
- दूध के जरे ह मही ल फूक के पीथे (दूध का जला छाछ को भी कर पीता है)
- दुधारी गरुवा के लातों मीठ (दुधारु गाय की लात भी सुहाती है)
- दुरिहा के ढोल सुहावन (दूर के ढोल सुहावने)
- धोए मुरई बिन धोए मुरई एके बरोबर (गधा घोडा एक समान)
- न उधो के देना न माधो से लेना (न उधो को देना न माधो से लेना)
- न गाँव म घर न खार म खेत (न गाँव में घर न खार में खेत)
- कतको घी खवा चाँटा के चाँटा (कितना भी खिलाओं अंग नहीं लगेगा)
- न मरय न मोटाए (न मरेगा न मोटाएगा)
- नकटा के नाक कटाए सवा हाथ बाढय (नक्टे की नाक कटी परन्तु वह सवा हाथ बढ गयी)
- नानकुन मुह बडे-बडे गोठ (छोटा मुँह बडी बात)
- नीच जात पद पाए हागत घानी गीत गाए (तुच्छ को पदवी मिल जाती है तो वह अभिमानी हो जाता है)
- नौ हाथ के लुगरा पहिरे तभो टांग उघरा (नौ हांथ लम्बी साडी पहनने पर भी पैर नंगे)
- पर भरोसा तीन परोसा (पराधीन सपनेहू सुख नाही)
- सही बात के गांड गवाही (सांच को आंच नहीं)
- फोकट के पाए त मरत ले खाए (फोकट के चंदन घिस मेरे नंदन)
- बर न बिहाव छट्ठी बर धान कुटाए (शादी न ब्याह छठी के लिए धान कुटाए)
- जादा मीठ म कीरा परय (अति परिचयात् अवज्ञा)
- बाते के लेना बाते के देना (ब्यर्थ बकवास करना)
- बाप मारिस मेचका बेटा तीरंदाज (बाप ने मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज)
- बाप ले बेटा सवासेर (बाप से बेटा सवा शेर)
- बिन देखे चोर भाई बरोबर (बिना देखा हुआ चोर भाई बराबर)
- बिलई के भाग म सिका टुटय (बिल्ली के भाग्य से टूटा)
- बुढ़तकाल के लइका सबके दुलरवा (बुढ़ापे का बच्चा सबका प्यारा)
- बेंदरा काय जानय आदा के सुवाद (बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद)
- भगवान घर देर हे अंधेर नइ ये (भगवान के घर देर है अँधेर नहीं)
- भागे भूत के लंगोटी सही (भागे भूत की लंगोटी सही / नहीं मामा से काना मामा)
- भूख न चिनहय जात कुजात, नींद न चिनहय अवघट घाट (भूख जात कुजात की और नींद अच्छे बुरे स्थान की पहचान नहीं करती)
- भंइस के आघू बिन बजाए भैंइस बइठे पगराए (भैंस के आगे बिन बजाए भैंस रही पगुराए)
- दान के बछिया के दाँत नि गिने जाए (दान की वस्तुओं का मूल्यांकन नहीं किया जाता)
- मार के देखे भुतवा काँपे (मार से भूत भी काँपता है)
- मुड़ मुड़ाए त छुरा ल का डराए (ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डरना)
- ररूहा खोजय दार भात (दरिद्र को सिर्फ खाना चाहिए)
- राखही राम त लेगही कोन, लेगही राम त राखही कोन (जाको राखै साईयाँ मार सकै न कोय, बाल न बाँका कर सकै चाहे जग बैरी होय)
- रात भर गाडा फाँदे, कुकदा के कुकदा (रात भर गाडी चलाई जहाँ के तहाँ)
- रात भर रमायन पढिस, बिहनियाँ, पूछिस राम सीता कोन ए त भाई बहिनी (रात भर रामायण पढी, सुबह पूछा कि राम सीता कौन तो बताया भाई-बहन)
रुपया ला रुपया कमाथे (रुपए को रुपया कमाता है)
लंका म सोन के भूति (लंका में सोने की मजदूरी)
लइका जांग म हाग दिही त जांग ल थोरे काट देबे (यदि बच्चा जांग पर मल त्याग कर दे तो जांघ को थोडे ही काट देते हैं)
लबरा घर खाए त पतियाए (झूठे की खाए तभी विश्वास करे)
लात के देवता बात म नइ मानय (लातों के भूत बातों से नहीं मानते)
लाद दे लदा दे छे कोस रेंगा दे (लाद दो लदा दो छह कोस पहुँचा दो)
संझा के झडि़ बिहनिया के झगरा (शाम की झड़ी और सुबह का झगड़ा)
सबो कुकुर गंगा चल दिही त पतरी ल कोन चाटही (सब कुत्ते गंगा चले जायेंगे तो पत्तल कौन चाटेगा)
सबो अंगरी बरोबर नइ होवय (सभी अंगुलियाँ बराबर नहीं होतीं)
सरहा मछरी तरीया ला बसवाथे (एक सडी मछली पूरे तालाब को गंदा करती है)
सस्ती रोवय घेरी-फेरी महँगी रोवय एक बेर (सस्ता रोए बार-बार रोए एक बार)
जोन सहही तेकर लहही (जो सहेगा वह टिकेगा)
सांझी के बइडला किरा पर के मरय (सांझे का बैल कीडे पडकर मरता है)
सावन मं आँखी फुटिस हरियर के हरियर (सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है)
सास लइकोरी, बहू सगा आइस तउनो लइकोरी (जब सभी कामचोर हों तो काम कभी पूरा नहीं होता)
सीखाए पूत दरबार नइ चढ़य (सिखाया हुआ पुत्र दरबार नहीं चढ़ता)
सौ ठन बोकरा अउ झांपी के डोकरा (एक अनुभवी सौ नवसिखियों पर भारी पडता है)
सुनय सबके करय अपन मन के (सुने सबकी करे अपने मन की)
सूते के बेर मूते ल जाए, उठ उठ के घुघरी खाए (सोने के वक्त पेशाब करने जाता है और उठ उठ कर घुघरी खाता है)
सोझ अंगरी म घी नई निकरय (सीधी अंगुलि से घी नहीं निकलता)
सौ ठन सोनार के त एक ठन लोहार के (सौ सुनार की तो एक लोहार की)
सोवय तउन खोवय, जागय मउन पावय (जो सोया वह खोया, जो जागा सो पाया)
हगरी के खाए त खाए फेर उटकी के झन खाए (एहसान फरामोशों से कुछ नहीं लेना चाहिए)
हाथी के पेट म सोंहारी (ऊँट के मुँह में जीरा)
हाथी बुलक गे पूछी लटक गे (हाथी निकल गया पूँछ रह गयी)
आवन लगे बरात त ओटन लगे कपास (बारात आने पर आरती के लिए कपास ओटने चले)
कुँआर करेला, कातिक दही, मरही नही त परही सही (क्वार में करेला और कार्तिक में दही खाने वाला यदि मरेगा नहीं तो बीमार अवश्य पडेगा)
पीठ ल मार ले त मार ले फेर पेट ल झन मारय (किसी के पेट पर लात मारना ठीक नहीं)
बिन रोए दाई घलो दूध नई पियावय (बच्चे के रोए बिना माँ भी दूध नहीं पिलाती)
मुड मुडाए देरी नइ ए करा बरसे लागिस (आसमान से टपके, खजूर पर अटके)
हर्रा लगय न फिटकरी रंग चोखा (मुफ्त में अच्छा काम हो जाना)
निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ी कहावतें छत्तीसगढ़ी संस्कृति की धरोहर हैं। इन कहावतों में जीवन के गहरे सत्य छुपे होते हैं जो हमें हंसाते भी हैं और सिखाते भी हैं। ये कहावतें न केवल पुरानी परंपराओं का हिस्सा हैं बल्कि वर्तमान में भी लोगों को जीवन जीने की राह दिखाती हैं।