कवर्धा जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल

कवर्धा जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल:

कवर्धा ज़िला जो कि अब यह कबीरधाम कहलाता है। सकरी नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक शांतिपूर्ण और आकर्षक स्थान है। कबीर साहिब के आगमन और उनके शिष्य धर्मदास के वंशज की गददी स्थापना के कारण इसका नाम कबीरधाम था। जो कबीरधाम के रूप में जाना जाता है।

कवर्धा जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल
कवर्धा जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल

कवर्धा जिले के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल

भोरमदेव मंदिर

भोरमदेव मंदिर का इतिहास

ऐतिहासिक और पुरातात्विक विभाग द्वारा की गयी खोज और यहाँ मिले शिलालेखो के अनुसार भोरमदेव मंदिर का इतिहास 10 वीं से 12 वीं शताब्दी के बीच कलचुरी काल का माना जाता है। भोरमदेव मंदिर के निर्माण का श्रेय फैनिनगवंश वंश के लक्ष्मण देव राय और गोपाल देव को दिया गया है। मंदिर परिसर को अक्सर “पत्थर में बिखरी कविता” के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र के गोंड आदिवासी भगवान शिव की पूजा करते थे, जिन्हें वे भोरमदेव कहते थे इसीलिए इस मंदिर को भोरमदेव मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। इतिहासकारों की माने तो यह मंदिर पूरे खजुराहो समूह से भी पुराना है।

भोरमदेव मंदिर
भोरमदेव मंदिर

भोरमदेव मंदिर निर्माण शैली

भोरमदेव मंदिर मैकल पर्वतसमूह के गोद में स्थित है जिसके आसपास पेड़ पौधों की हरियाली खुशनुमा वातावरण का निर्माण करती है। यह मंदिर नागर शैली में निर्मित है इसकी बाहरी दीवारों पर कामुक मुद्रा वाली मूर्तियाँ है जो बहुत ही सुंदर तरीके से उकेरा गया है। यह सभी मूर्तियाँ कामसूत्र के विभिन्न आसन से प्रेरित हैं।

भोरमदेव मंदिर में कितने भगवानो की मूर्ति है ?

 भोरमदेव मंदिर में भगवान विष्णु के 10 अवतारों की खूबसूरती से तराशी गई मूर्तियां, साथ ही भगवान शिव और भगवान गणेश की छवियां हैं


भोरमदेव मंदिर क्यों प्रसिद्ध है?

भोरमदेव , शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पडा

छेरकी महल

छेरकी महल का इतिहास

14 वीं ईस्वी शताब्दी में बना, ये पुरातन शिव मंदिर है | यह मंदिर निकटवर्ती भोरमदेव मंदिर और मड़वा महल से छोटा है, लेकिन इस मंदिर का मुख्य द्वार चतुर्भुज भगवान गणेश, शिव, पार्वती और नदी देवियों की खूबसूरत नक्काशी से सुसज्जित है।

छेरकी महल
छेरकी महल

मैकाल पर्वत श्रंखला के सुरम्य परिदृश्य के बीच निर्मित इस मंदिर की खूबसूरती मन को बहुत प्रसन्न कर देती है, शहर के शोर से दूर यहां बहुत शांति है, ध्यान करने के लिए बहुत सुंदर जगह भी है, जब भी यहां आए तो 5 min बैठ कर आनंद जरूर लें, और मंदिर की गरिमा और स्वच्छता बनाये रखे।

छेरकी महल कहा स्थित है?

छत्तीसगढ़ राज्य के संरक्षित स्मारक छेरकी महल छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले में चौरा नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है।.

मड़वा महल

यह मंदिर भोरमदेव मंदिर (Bhoramdev Temple) के दक्षिण में मात्र 1 KM की दूरी  पर चौरग्राम में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा रामचंद्र देव की पत्नी के किया गया है। कहा जाता है की यह मंदिर उस समय के नागवंशी राजा और हैहय वंश की रानी के विवाह के समय बनाया गया था, इस मंदिर का नाम मड़वा महल (Madva Mahal) इसी कारण पड़ा है क्योंकि छत्तीसगढ़ी बोली में मंड़वा का मतलब विवाह मण्डप होता है, और यह मंदिर शादी मंडप के आकृति का है जो पत्थरो से निर्मित है। इस मंदिर के दीवारों पर विभिन्न रति क्रीडा से सम्बंधित आकृतियाँ उकेरी गयी है।

मड़वा महल
मड़वा महल

मड़वा महल किस भगवन का महल है?

वैसे तो मूल रूप से मड़वा महल एक शिव मंदिर था परंतु इसका आकार विवाह के शामियाना की तरह होने के कारण इसे मड़वा महल के रूप में जाना जाता हैं। इसे दुल्हा देव भी कहा जाता हैं। जिसके गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित हैं।

मड़वा महल का निर्माण किसने और कब कराया था

नागवंशी सम्राट रामचंद्र देव ने सन 1349 में यहां मंदिर का निर्माण कराया।

जैन तीर्थ बकेला

 कबीरधाम जिला कई धर्मों को अपने अन्दर समाहित करने वाले एक धार्मिक आस्था से परिपूर्ण क्षेत्र रहा है | यहाँ हिंदू धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म को सामान रूप से सम्मान मिला हुआ है।बकेला, पिंडारी तहसील मुख्यालय के 20 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम और पचराही से एक किलोमीटर कि दुरी पर स्थित है. जहां से 10 वीं शताब्दी में काले रंग की ग्रेनाइट पत्थर से बना जैन तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ की 51 इंच लंबी मूर्ति स्थापित है, जोकि 1978 में प्राप्त की गई थी। यहां जैन धर्मावलम्बियों हेतु जैन तीर्थयात्रा विकसित किया गया है।

जैन तीर्थ बकेला कहा स्थित है ?

बकेला, पिंडारी तहसील मुख्यालय के 20 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम और पचराही से एक किलोमीटर कि दुरी पर स्थित है.

जैन तीर्थ बकेला किसकी मूर्ति है ?

प्रभु पार्श्वनाथ की 51 इंच लंबी मूर्ति स्थापित है.

चिल्फी घाटी

भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम ज़िले में स्थित एक गाँव है। राष्ट्रीय राजमार्ग 30 यहाँ से गुज़रता है। यह 807 मीटर (2648 फुट) की ऊँचाई पर स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र है। यहाँ का मौसम रमणीय है और पास के प्राकृतिक दृश्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। इस कारण इसे कभी-कभी “छत्तीसगढ़ का कश्मीर” कहा जाता है।

चिल्फी घाटी की खास बात क्या है?

यहाँ का मौसम रमणीय है और पास के प्राकृतिक दृश्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

लोहारा बावली

लोहारा बावली एक ऐतिहासिक इमारत है, जो छत्तीसगढ़ राज्य के कवर्धा ज़िले की दक्षिण-पश्चिम दिशा में 20 किमी की दूरी पर स्थित है। लोहारा बावली का निर्माण बैजनाथ सिंह ने 120 वर्ष पहले कराया था। बैजनाथ सत्तारूढ़ कवर्धा परिवार के एक शाखा के एक सदस्य थे।

लोहारा बावली कहा स्थित है?

छत्तीसगढ़ राज्य के कवर्धा ज़िले की दक्षिण-पश्चिम दिशा में 20 किमी की दूरी पर स्थित है

लोहारा बावली का निर्माण किसने करवाया था ?

लोहारा बावली का निर्माण बैजनाथ सिंह ने 120 वर्ष पहले कराया था।

कान्हा राष्ट्रीय पार्क

कान्हा टाइगर रिजर्व, जिसे कान्हा राष्ट्रीय उद्यान भी कहा जाता है, भारत के बाघों के भंडार में से एक है और भारत के मध्य में स्थित मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। वर्तमान में कान्हा क्षेत्र को दो अभयारण्यों में विभाजित किया गया है, हॉलन और बंजार, क्रमशः 250 और 300 किमी 2। कान्हा नेशनल पार्क 1 जून 1955 को बनाया गया था और 1973 में कान्हा टाइगर रिजर्व बनाया गया था। आज यह दो जिलों मंडला और बालाघाट में 940 किमी 2 कि.मी. क्षेत्र में फैला है।

कान्हा राष्ट्रीय पार्क किस कारण प्रसिद्ध है?

कान्हा राष्ट्रीय पार्क बाघों के भंडार के कारण प्रसिद्ध है।

कान्हा राष्ट्रीय पार्क में कितने बाघ है ?

कान्हा राष्ट्रीय पार्क में 118 बाघ, 146 तेंदुए है।

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