छत्तीसगढ़ का रावत नृत्य: एक जीवंत परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर

छत्तीसगढ़ का रावत नृत्य: एक जीवंत परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर

छत्तीसगढ़ राज्य की सांस्कृतिक विविधता और धरोहरों में रावत नृत्य का एक विशेष स्थान है। यह नृत्य न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि पूरे भारत में यादव समुदाय की संस्कृति और परंपराओं को जीवंत रखने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। रावत नृत्य, जिसे ‘अहिरा’ या ‘गहिरा’ नृत्य भी कहा जाता है, छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और यह दीपावली के त्योहार के अवसर पर आयोजित किया जाता है।

रावत नृत्य का महत्व और पहचान

रावत समुदाय की संस्कृति और परंपराओं का अभिन्न हिस्सा होते हुए, इस नृत्य में उनके रहन-सहन, वेश-भूषा, खान-पान, और रीति-रिवाजों का अनूठा समन्वय देखा जा सकता है। यह नृत्य रावत समुदाय की पुरानी धरोहरों और परंपराओं को सहेजने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यादव, पहटिया, ठेठवार और राउत आदि नामों से प्रसिद्ध इस जाति के लोग इस नृत्य पर्व को ‘देवारी’ के रूप में मनाते हैं, जिसे दीवाली के साथ जोड़ा जाता है।

रावत नृत्य के तीन प्रमुख भाग

रावत नृत्य तीन भागों में विभाजित है:

  1. सुहई बाँधना: यह नृत्य का पहला चरण है, जहां राउत अपने इष्ट देवता की पूजा करके अपने मालिक के घर सोहई बाँधने के लिए निकलते हैं। सोहई गाय के गले में बांधा जाता है, जो कि उनकी उन्नति और सुरक्षा की कामना के रूप में किया जाता है। सोहई बाँधना दरअसल एक शुभ शुरुआत का प्रतीक है।
  2. मातर पूजा: नृत्य के इस चरण में राउत समुदाय की माताओं का पूजन किया जाता है। यह नृत्य के दौरान महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस समय मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। दीपावली के दिन विशेष रूप से मातर पूजा का आयोजन होता है, जो कि देवी लक्ष्मी की कृपा और समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है।
  3. काछन चढ़ाना: यह रावत नृत्य का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण चरण है। इस दौरान राउत समुदाय के लोग बड़े ही धूमधाम से गोवर्धन पूजा का आयोजन करते हैं। गोवर्धन पूजा के साथ ही यह पर्व अपने समापन की ओर बढ़ता है, और इस दौरान नृत्य और संगीत के साथ खुशियां मनाई जाती हैं। काछन चढ़ाना दरअसल समाज के प्रमुख व्यक्तियों के घरों में जाकर उनकी सुरक्षा और समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है।

रावत नृत्य का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

रावत नृत्य केवल एक लोकनृत्य नहीं है, बल्कि यह राउत समुदाय की सांस्कृतिक धरोहरों को संजोने और संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इसके माध्यम से वे अपने पूर्वजों की परंपराओं को जीवित रखते हैं और नई पीढ़ी को उनकी संस्कृति से जोड़ते हैं। यह नृत्य समुदाय के एकीकरण और सामूहिक पहचान का प्रतीक भी है। रावत नृत्य से जुड़ी परंपराएं और रीति-रिवाज यह दर्शाते हैं कि आधुनिकता के प्रभाव के बावजूद रावत समुदाय ने अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को संजोए रखा है।

निष्कर्ष

रावत नृत्य छत्तीसगढ़ राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का एक जीवंत उदाहरण है। यह नृत्य यादव समुदाय के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक है। यह न केवल दीपावली के त्योहार के समय लोगों के बीच उल्लास और खुशी लाता है, बल्कि उनकी पुरानी परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों को भी जीवित रखता है।

इस नृत्य के माध्यम से रावत समुदाय अपनी सामूहिक पहचान को सुदृढ़ करता है और नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ता है। इसलिए, रावत नृत्य को न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे भारत में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसे संरक्षित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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