छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक परिचय: रामायण, महाभारत और पौराणिक संदर्भों से जुड़ी कहानी
जानिए छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास, जहाँ रामायण की भूमि, महाभारत के पात्र और वैदिक ऋषियों का प्रभाव आज भी जीवंत है। कौसल्या मंदिर, वाल्मीकि आश्रम, मयूरध्वज की कथा और भी बहुत कुछ।
छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक परिचय
छत्तीसगढ़, जिसे प्राचीन काल में “कौसल” के नाम से जाना जाता था, ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध राज्य है। यह प्रदेश रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों से जुड़ा हुआ है।
कौसल्या और राम का संबंध
कहा जाता है कि कौसल राज्य के राजा कौसल्य की पुत्री कौसल्या का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था। श्रृंगी ऋषि, जो सिहावा के आश्रम में रहते थे, ने यज्ञ करवाया जिसके फलस्वरूप राम का जन्म हुआ। इस कारण राम को छत्तीसगढ़ का भानजा माना जाता है। आज भी मामा-भांजे का संबंध यहाँ पवित्र माना जाता है।
कौसल्या मंदिर
भारत में एकमात्र कौसल्या मंदिर छत्तीसगढ़ के कोसीर ग्राम (रायगढ़-बिलासपुर सीमा) में स्थित है, जो इस ऐतिहासिक जुड़ाव का प्रमाण है।
पुराणों और वंश परंपरा से जुड़ी कहानियाँ
सुद्युम्न, जो पहले इला थे, से उत्पन्न तीन पुत्रों में से एक बिनताश्व के वंशज कौसल राजा हुए। इस कारण इस क्षेत्र का नाम “कौसल” पड़ा। हरि ठाकुर की “छत्तीसगढ़ गाथा” के अनुसार यह प्रदेश वेदकालीन काल जितना प्राचीन है।
दण्डकारण्य और इक्ष्वाकु वंश
इक्ष्वाकु वंश के दण्डक ने बस्तर में राज्य स्थापित किया और इसी से क्षेत्र का नाम “दण्डकारण्य” पड़ा। जब शुक्राचार्य के शाप से यह नष्ट हो गया, तो यह पुनः कौसल राज्य में सम्मिलित हुआ।
अगस्त ऋषि और बस्तर
अगस्त ऋषि ने दक्षिण भारत में आश्रम संस्कृति का प्रचार किया। उनका आश्रम बस्तर के दक्षिण-पूर्व में था। वे विदर्भ की कन्या लोपामुद्रा से विवाह कर ऋग्वेद के मंत्रों में वर्णित हुए।
संजीवनी बूटी और वैद्यराज सुदेषण
रामायण के अनुसार संजीवनी बूटी का पता छत्तीसगढ़ निवासी वैद्यराज सुदेषण ने बताया था। गंधमादन पर्वत, जहाँ से हनुमान बूटी लाए थे, ॠक्ष पर्वत का हिस्सा है। जामवंत को “ऋक्षराज” कहा जाता था।
छत्तीसगढ़ की पर्वत श्रृंखलाएँ और नदियाँ
छत्तीसगढ़ के उत्तर में विंध्य, मध्य में ऋक्ष पर्वत और दक्षिण में शक्तिमत पर्वत हैं। गंधमादन, मेकन, अमरकंटक और सिहावा पर्वत से महानदी, नर्मदा, सोन आदि नदियाँ निकलती हैं। राजिम और शिवरीनारायण में दो त्रिवेणी संगम हैं।
वाल्मीकि आश्रम और तुरतुरिया
वाल्मीकि ऋषि का आश्रम तुरतुरिया (बलौदाबाजार) में था। यहीं सीता निर्वासन काल में रहीं और कुश-लव का जन्म हुआ। राम ने कुश को छत्तीसगढ़ का शासक बनाया। उनके वंशज हिरण्यनाम को याज्ञवल्क्य जैसे ऋषियों ने गुरु माना।
महाभारत काल और मयूरध्वज की कथा
राजसूय यज्ञ के समय कृष्ण और अर्जुन छत्तीसगढ़ आए। रायपुर में हैहयवंश के राजा मयूरध्वज का शासन था। जब अर्जुन उन्हें युद्ध में पराजित न कर सके, तो कृष्ण ने उनकी दानवीरता की परीक्षा ली। राजा ने अपने शरीर का आधा भाग काटने को सहर्ष प्रस्तुत होकर अपनी भक्ति और दानशीलता का प्रमाण दिया।
निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ न केवल प्राकृतिक संसाधनों और सांस्कृतिक विविधता से समृद्ध है, बल्कि उसका इतिहास रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में गहराई से दर्ज है। यह प्रदेश पौराणिक परंपराओं, महान तपस्वियों, और ऐतिहासिक पात्रों की धरती है।