छत्तीसगढ़ का खेल परिदृश्य: पारंपरिक लोक खेलों की जीवंत झलक
छत्तीसगढ़ केवल अपनी सांस्कृतिक विविधता, त्यौहारों और लोकगीतों के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यहां के पारंपरिक लोक खेल भी इसकी समृद्ध संस्कृति के जीवंत प्रमाण हैं। आधुनिक खेलों की भीड़ में जहां पारंपरिक खेल विलुप्त हो रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में आज भी ग्रामीण परिवेश में ये खेल बच्चों और युवाओं के मनोरंजन व प्रशिक्षण का प्रमुख माध्यम हैं।
🎮 छत्तीसगढ़ के प्रमुख पारंपरिक खेल:
1. गिल्ली डंडा
– दो खिलाड़ियों या टीमों में खेला जाने वाला लोकप्रिय देसी खेल
– लकड़ी की बनी गिल्ली को डंडे से मारकर दूर भेजा जाता है
– हारा खिलाड़ी गिल्ली को वापस गोले में डालने का प्रयास करता है
2. अटकन-बटकन
– गोल घेरे में बैठकर पंजों पर तर्जनी घुमाई जाती है
– गीत के अंत में जिसकी हथेली सीधी होती है, वह विशेष भूमिका निभाता है
– यह खेल राइमिंग और कोऑर्डिनेशन का अद्भुत मिश्रण है
3. फुगड़ी
– मुख्य रूप से लड़कियों का खेल
– ज़मीन पर बैठकर लय में पैरों की हलचल
– थक जाने पर खिलाड़ी हट जाता है
4. डंडा कोलाल
– चरवाहों द्वारा खेला जाने वाला बल और फुर्ती का खेल
– डंडे को पैरों के बीच से फेंकना होता है
– कम दूरी फेंकने वाले को “दाम” देना होता है
5. लंगड़ी
– एक पाँव पर दौड़ते हुए पकड़म-पकड़ाई का खेल
– समन्वय और संतुलन का अभ्यास
6. खुडुवा (कबड्डी)
– कबड्डी के समान ही एक खेल
– गुप्त नाम रखकर टीमों का चयन होता है
– निर्णायक नहीं होता, सामूहिक निर्णय लिए जाते हैं
7. डांडी पौहा
– गोल घेरे में खेले जाने वाला बलपूर्वक खींचने का खेल
– संकेत मिलने पर बाहर और अंदर के खिलाड़ी खींचने की कोशिश करते हैं
8. बित्ता कूद
– ऊँचाई नापकर बारी-बारी से कूदने का खेल
– जोड़ी में खेला जाता है, टच होने पर साथी को कूदना होता है
9. गोटी
– कंकड़ या पत्थर की सहायता से खेला जाता है
– बैठकर चुस्ती व अंगुलियों के नियंत्रण का अभ्यास
– दो तरीकों से खेला जाता है (बीनना, राउंड खेलना)
10. फल्ली
– पाँच लोगों द्वारा खेले जाने वाला समूह खेल
– खपरैल के टुकड़े की रक्षा करते हुए अन्य खिलाड़ी उसे चुराते हैं
11. नदी-पहाड़ / अंधियारी-अंजोरी
– नदी/पहाड़ या अंधियारी/अंजोरी कहने पर बच्चों को विपरीत स्थान पर जाना होता है
– पकड़े जाने पर दाम देना होता है
12. भौंरा (लट्टू)
– कील लगे लकड़ी के टुकड़े को रस्सी से घुमाना
– एक-दूसरे के भौंरे को गिराने की कोशिश
13. बिल्लस
– पत्थरों या चौकोर घरों में खेला जाने वाला कूद-फांद आधारित खेल
14. चांदनी
– पारी वाला बच्चों को एक्शन करवाता है
– गलत एक्शन पर पकड़ने से “दाम” देना पड़ता है
15. खिलामार
– जमीन में कील गाड़कर छिपने का खेल
– पारी वाला सबको ढूंढता है और पकड़ने पर दाम मिलता है
16. बाँटी (कंचा)
– कंचे फेंककर लक्ष्य साधना
– अंक जोड़ने और दूर से कंचा मारने की कला
🧭 छत्तीसगढ़ी लोक खेलों की पारंपरिक विशिष्टताएँ:
🪙 1. दाम का प्रचलन
– विजेता को पुरस्कार नहीं, “दाम” मिलता है
– यह प्रतीकात्मक संतोष व आनंद का सूचक होता है
– हारने वाला “पादी” कहलाता है
🌀 2. फत्ता (टॉस)
– खेल की शुरुआत तय करने के लिए “फत्ता” शब्द का उपयोग
– छत्तीसगढ़ी संस्कृति में यह टॉस का लोक रूप है
🗣️ 3. सुसीरिया (रेफरी)
– खेलों में रेफरी या एम्पायर नहीं, बल्कि “सुसीरिया” होता है
– सिटी या हँसी के माध्यम से खेल को नियंत्रित करता है
🧑🤝🧑 4. गड़ी (साथी)
– दल के सदस्यों को गड़ी कहा जाता है
– हर टीम के खिलाड़ी अपने साथियों को गड़ी कहकर संबोधित करते हैं
🍼 5. दूध-भात (नवशिक्षु खिलाड़ी)
– अनाड़ी खिलाड़ियों को खेल में शामिल करने के लिए “दूध-भात” कहा जाता है
– अनुभवहीन खिलाड़ियों को गलती की छूट मिलती है
– यह परंपरा प्रशिक्षण की भावना दर्शाती है
🎯 लोक खेलों के वर्ग
प्रकार | खेल |
---|---|
दुच्छ लोक खेल | भिर्री, कूचि, संडउआ, तोरईफूल, फ़ोदा, टेकन |
गीतिक लोक खेल | भौरा, धायगोड़, फुगड़ी, अटकन-बटकन, बिरो |
सामग्री युक्त खेल | गिल्ली, भौंरा, खिलामार, गोटी, बिल्लस, बाँटी, फल्ली |
📝 निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ी लोक खेल केवल मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि यह सामूहिकता, अनुशासन, निर्णय क्षमता, नेतृत्व, और पारंपरिक ज्ञान का जीवंत स्वरूप हैं। इन खेलों में न सिर्फ खेल की भावना है, बल्कि संस्कृति, प्रशिक्षण और समावेशिता की मजबूत नींव भी है। हमें इन पारंपरिक धरोहरों को संरक्षित और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है ताकि नई पीढ़ी लोक परंपरा के मूल्यों को समझकर उससे जुड़ सके।