छत्तीसगढ़ में कल्चुरी वंश [Kalchuri dynasty in Chhattisgarh]

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कलचुरी वंश का इतिहास

  • स्थापना: कलचुरी वंश का मूल पुरुष कृष्णराज था, जिसने इस वंश की स्थापना की और 500 से 575 ई. तक राज्य किया।
  • शासन क्रम:
    • कृष्णराज के बाद, उसके पुत्र शंकरगण प्रथम ने 575 से 600 ई. तक शासन किया।
    • फिर शंकरगण के पुत्र बुद्धराज ने 600 से 620 ई. तक शासन किया।
  • अज्ञात स्थिति: 620 ई. के बाद लगभग डेढ़ सौ से पौने दो सौ वर्षों तक कलचुरियों की स्थिति अज्ञात रही और वे कमजोर होते गए।
  • क्षेत्रीय अधिपत्य: इस अवधि (550 से 620 ई.) में कलचुरी गुजरात, कोंकण और विदर्भ के स्वामी थे।

साम्राज्य का विस्तार

  • 9वीं शताब्दी: ईसा की 9वीं शताब्दी में कलचुरियों ने साम्राज्य का विस्तार किया।
  • वामराज देव: वामराज देव ने गोरखपुर प्रदेश पर आधिपत्य कर अपने भाई लक्ष्मणराज को गद्दी पर बैठाया। इन्हें सरयूपार के कलचुरी कहा गया।
  • राजधानी का स्थानांतरण: वामराज देव के पुत्र ने त्रिपुरी (महिष्मती के समान नर्मदा तट पर) को अपनी राजधानी बनाया।
  • राजधानियाँ: वामराज देव की कालंजर प्रथम और त्रिपुरी द्वितीय राजधानी रही।
  • त्रिपुर के संस्थापक: वामराज देव त्रिपुर के कलचुरिवंश का संस्थापक था। त्रिपुरी, जबलपुर से 6 मील दूरी पर है और इसका वर्तमान नाम तेवर है।
  • चैटूय या चंदि नरेश: इस समय कलचुरियों को ‘चैटूय’ या ‘चंदि नरेश’ कहा जाता था।

स्थायी राजधानी की स्थापना

  • कोकल्ल प्रथम: त्रिपुरी में स्थायी रूप से राजधानी स्थापित करने का श्रेय कोकल्ल प्रथम (875-900 ई.) को है।
  • प्रतापी राजा: कोकल्ल अत्यन्त प्रतापी राजा था, जिसकी विजयों का उल्लेख ‘बिलहरी लेख’ में मिलता है।
  • संबंध: कोकल्ल का विवाह चंदेलों में हुआ और उसकी पुत्री का विवाह राष्ट्रकूटवंशी कृष्ण द्वितीय के साथ हुआ।
  • शंकरगण द्वितीय: कोकल्लदेव के 18 पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र शंकरगण द्वितीय ‘मुग्धतुंग’ (900-925 ई.) को त्रिपुरी की गद्दी प्राप्त हुई।

विजय और क्षेत्रीय विस्तार

  • कोसल पर अधिकार: ‘मुग्धतुंग’ ने लगभग 900 ई. में कोसल के राजा को पराजित कर कोसल पर अधिकार कर लिया।
  • अन्य पुत्रों के मंडल: कोकल्ल के अन्य पुत्रों में से कुछ त्रिपुरी के निकटवर्ती मंडलों के मंडलाधिपति बने, और कुछ भाइयों को बिलासपुर जिले के कुछ मंडल प्राप्त हुए।

तुम्मान शाखा

नवीन राजधानी: कलिंगराज ने तुम्मान को अपनी राजधानी बनाया और दक्षिण कोसल में कलचुरियों की वास्तविक सत्ता की स्थापना की, 1000 ई. में कलचुरि राज्य की नींव डाल कर अपनी शक्ति में वृद्धि की।

महाकोसल की स्वतंत्रता: तुम्मान की यह शाखा महाकोसल को स्वतंत्र कराने रही।

क्षेत्रीय विस्तार: त्रिपुरी की मूल गद्दी ने उत्तर में नेपाल, पूर्व में बंगाल, पश्चिम में गुजरात और दक्षिण में कुन्तल देश तक विस्तार किया।

सोमवंशियों का अधिकार: मंडलेश्वर का यह वंश तुम्मान में चलता रहा, लेकिन बाद में कमजोर होने पर सोमवंशियों ने वहाँ अपना अधिकार कर लिया।

लक्ष्मणराज का प्रयास: लक्ष्मणराज द्वारा त्रिपुरी से अपने पुत्र कलिंगराज को भेजा गया, जिसने तुम्मान को फिर से अपने अधिकार में लिया और समस्त दक्षिण कोसल का जनपद भी जीत लिया।

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