छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास: ऐतिहासिक यात्रा और भाषाई विकास

जानिए छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास, उसकी उत्पत्ति, अपभ्रंश भाषाओं से आधुनिक स्वरूप तक की यात्रा। छत्तीसगढ़ी का इतिहास, प्राचीन काल से वर्तमान तक।

🗣️ छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास: ऐतिहासिक यात्रा और भाषाई विकास

छत्तीसगढ़ी भाषा, भारत की समृद्ध भाषाई परंपरा का अभिन्न अंग है, जिसका विकास भी अन्य आधुनिक भारतीय भाषाओं की तरह ही प्राचीन आर्य भाषा से हुआ है। समय के साथ आर्यों की भाषा में परिवर्तन हुए और इन्हीं परिवर्तनों के फलस्वरूप हिंदी एवं उसकी उपभाषाओं सहित छत्तीसगढ़ी का भी जन्म हुआ।


🔍 भाषाई विकास के चरण

भारतीय आर्य भाषाओं के विकास को व्याकरणाचार्यों ने तीन प्रमुख कालों में विभाजित किया है:

1️⃣ प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल (1500 ई.पू. – 500 ई.पू.)

  • इस काल की भाषाएँ वेदों, उपनिषदों और संस्कृत ग्रंथों में मिलती हैं।
  • संस्कृत उस समय की प्रमुख साहित्यिक भाषा थी।
  • रुद्रदामन का गिरनार शिलालेख (150 ई.) इसका ऐतिहासिक उदाहरण है।
  • इस काल में पाली जैसी जनभाषाओं का भी उदय हुआ, जिसका उपयोग भगवान बुद्ध ने धर्म प्रचार हेतु किया।

2️⃣ मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल (500 ई.पू. – 1000 ई.)

  • इस काल में प्राकृत भाषाओं का विकास हुआ — जैसे शौरसेनी, मागधी, अर्धमागधी, महाराष्ट्री, पैशाची
  • प्राकृत भाषाएँ सामान्य जन की बोली थीं, जबकि संस्कृत उच्च वर्ग की भाषा बनी रही।
  • कालांतर में इन प्राकृत भाषाओं से ही अपभ्रंश भाषाओं का जन्म हुआ।

🌀 अपभ्रंश भाषाओं से आधुनिक भाषाओं का विकास:

अपभ्रंशविकसित आधुनिक भाषाएँ
मागधीबिहारी, उड़िया, बांग्ला, असमिया
अर्धमागधीपूर्वी हिंदी, अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी
शौरसेनीपश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली
पैशाचीलहंदा, पंजाबी
ब्राचड़सिंधी
खसकुमाऊँनी, गढ़वाली
महाराष्ट्रीमराठी

3️⃣ आधुनिक भारतीय आर्य भाषा काल (1000 ई. से वर्तमान काल तक)

  • इस काल में आधुनिक भाषाओं का निर्माण हुआ।
  • हिंदी भाषा की दो प्रमुख शाखाएं मानी जाती हैं:
    • पश्चिमी हिंदी – ब्रज, खड़ी बोली आदि।
    • पूर्वी हिंदी – अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी

🗺️ छत्तीसगढ़ी का भाषाई स्थान और विशेषताएँ

  • छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास अर्धमागधी अपभ्रंश से हुआ है।
  • यह पूर्वी हिंदी की एक प्रमुख बोली है।
  • छत्तीसगढ़ी, मूलतः जन भाषा रही है। इसमें प्राचीन समय में साहित्य सृजन कम हुआ, लेकिन आधुनिक काल में यह तेजी से समृद्ध हो रही है।
  • छत्तीसगढ़ी पर मराठी, बिहारी और स्थानीय आदिवासी बोलियों का प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है, जिससे इसमें भाषिक विषमता भी देखी जाती है।

📚 निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास एक ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है जो वैदिक संस्कृत से शुरू होकर प्राकृत, अपभ्रंश और अंततः आधुनिक भाषाओं तक पहुँचा। यह भाषा न केवल छत्तीसगढ़ राज्य की सांस्कृतिक आत्मा है, बल्कि यह भारतीय भाषाई विविधता का एक सशक्त प्रमाण भी है।

छत्तीसगढ़ी, भाषा ही नहीं, लोक-चेतना और सांस्कृतिक पहचान की भी संवाहिका है।