🌾 छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रमुख बोलियाँ: क्षेत्र, जाति और सांस्कृतिक प्रभाव
छत्तीसगढ़, जो भारतीय सांस्कृतिक विविधता की एक अद्वितीय झलक प्रस्तुत करता है, अपनी समृद्ध बोली परंपरा के लिए भी जाना जाता है। छत्तीसगढ़ी भाषा स्वयं एक अर्धमागधी अपभ्रंश की दक्षिणी शाखा से विकसित हुई है, और इसके अंतर्गत अनेक बोलियाँ पाई जाती हैं जो भौगोलिक और जातीय आधारों पर अलग-अलग पहचान रखती हैं।
🎓 डॉ. सत्यभामा आडिल अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य” में लिखती हैं कि —
“यह बोलीगत विभेद दो आधारों — जातिगत एवं भौगोलिक सीमाओं — के आधार पर विवेचित किये जा सकते हैं।”
📜 छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रमुख बोलियाँ
1. छत्तीसगढ़ी बोली
- क्षेत्र: रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग
- विशेषता: यह बोली मुख्यधारा की छत्तीसगढ़ी मानी जाती है और साहित्य, शिक्षा व मीडिया में सबसे अधिक प्रचलित है।
2. खल्टाही
- क्षेत्र: रायगढ़ जिले के कुछ हिस्से, बालाघाट ज़िले के पूर्वी भाग, कौड़िया, साले-टेकड़ी और भीमलाट
- विशेषता: इस बोली में स्थानीय जनजातीय प्रभाव झलकता है।
3. सरगुजिया
- क्षेत्र: सरगुजा, कोरिया और उदयपुर क्षेत्र
- विशेषता: इसमें उत्तर-पूर्वी छत्तीसगढ़ के जनजातीय समाज की सांस्कृतिक छाप स्पष्ट है।
4. लरिया
- क्षेत्र: महासमुंद, सराईपाली, बसना, पिथौरा और आसपास के क्षेत्र
- विशेषता: यह बोली ओड़िया सीमा से सटे होने के कारण कुछ ओड़िया प्रभाव भी दर्शाती है।
5. सदरी कोरबा
- क्षेत्र: जशपुर
- जातीय आधार: कोरबा जनजाति
- विशेषता: यह बोली मुख्यतः कोरबा जनजाति के बीच प्रचलित है और इसमें आदिवासी जीवनशैली की झलक मिलती है।
6. बैगानी
- क्षेत्र: कवर्धा, बालाघाट, बिलासपुर, संबलपुर
- जातीय आधार: बैगा जनजाति
- विशेषता: यह बोली बैगा समाज की संस्कृति, जीवनशैली और पारंपरिक ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है।
7. बिंझवारी
- क्षेत्र: रायपुर व रायगढ़ के कुछ हिस्से
- जातीय आधार: बिंझवार समाज
- विशेषता: यह बोली स्थानीय आदिवासी परंपरा से जुड़ी है।
8. कलंगा
- क्षेत्र: उड़ीसा सीमा से लगा पटना क्षेत्र
- विशेषता: उड़िया भाषा का प्रभाव और उड़िया लिपि में लेखन इसकी विशेष पहचान है।
9. भूलिया
- क्षेत्र: सोनपुर और पटना के क्षेत्र
- विशेषता: यह भी उड़िया लिपि में लिखी जाती है, और उड़िया भाषिक प्रभाव इसमें देखा जा सकता है।
10. बस्तरी या हलबी
- क्षेत्र: बस्तर
- जातीय आधार: हलबा जाति
- विशेषता: इसमें मराठी भाषा का प्रभाव देखा जाता है, और यह बस्तर की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है।
📌 निष्कर्ष
छत्तीसगढ़ की इन बोलियों में न केवल भाषायी विविधता है, बल्कि इनमें जनजातीय संस्कृति, भौगोलिक स्थिति और ऐतिहासिक संपर्कों की भी स्पष्ट छवि दिखाई देती है। हर बोली अपने आप में एक विशिष्ट पहचान रखती है और छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाए रखती है।
यदि छत्तीसगढ़ी संस्कृति को समझना है, तो उसकी बोलियों की आत्मा को समझना आवश्यक है। 🌿