छत्तीसगढ़ी भाषा में साहित्य सृजन

छत्तीसगढ़ी भाषा पर गोडी, उड़िया ,मराठी के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में बोले जाने वाली विभिन्न आदिवासियों की बोलियों का प्रभाव पड़ा. लगभग 1000 से छत्तीसगढ़ी भाषा में साहित्य सृजन की परंपरा शुरू हो चुकी थी .जिसे डॉक्टर नरेंद्र देव वर्मा ने कालक्रमानुसार विभाजित किया है

१. गाथा युग
२.भक्तियुग
3 आधुनिक युग

छत्तीसगढ़ी का जन्म  

छत्तीसगढ़ में मिले शिलालेखों के आधार पर छत्तीसगढ़ी का जन्म ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी से माना जा सकता है

उसके कुछ पहले के मागधी प्राकृत के शिलालेख छत्तीसगढ़ के पूर्व दिशा में तथा शौरसेनी प्राकृत के शिलालेख इस क्षेत्र के उत्तर पश्चिम दिशा में मिले हैं .इन दो प्राकृत के मिलने से एक नई प्राकृत का जन्म हुआ जिसे अर्धमगधी नाम दिया गया .अर्धमागधी से ही छत्तीसगढ़ी के वर्तमान स्वरूप का विकास हुआ .

छत्तीसगढ़ी साहित्य का इतिहास

गाथा युग (1000 से 1500 तक )

छत्तीसगढ़ में विभिन्न गाथाओं की रचना हुई यह गाथाएं प्रेम व वीरता के भाव से परिपूर्ण रही है.  इनका गाथाओ की परंपरा नहीं रही है तथा यह पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से अभिरक्षित होती आई है . आधुनिक युग में ही इन गाथाओं को लिपिबद्ध किया गया .  छत्तीसगढ़ की प्राचीन प्रेम प्रधान गाथाओं में केवलारानी ,अहिमन रानी ,रेवा रानी और राजा वीर सिंह की गाथाएं प्रमुख धार्मिक और पौराणिक कथा में फुलबासन और पंडवानी आते हैं .

प्रेम प्रधान  गाथाएं

छत्तीसगढ़ की प्राचीन प्रेम प्रधान गाथाये  अहिमन  रानी केवला  रानी रेवा  रानी और राजा वीर सिंह की गाथाएं इन गाथाओं का आकार पर्याप्त दीर्घ है. इसके वस्तुविन्यास तथा घटनाक्रम के नियोजन की शैली हिंदी के वीरगाथा कालीन ग्रंथों की शैलियों का स्मरण करा देती है . इनका मूल अंश बहुत अल्प मात्रा में उपलब्ध है और जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह गाथा राम प्रबंध काव्य शैली पर रची गई थी . इनमें वीरगाथा कालीन प्रबंध कारक की काव्य रूढ़ियो का परिपालन भी दिखता है. यह सभी गाथाएं नारी प्रधान है तथा नारी जीवन के असहाय और दुख पूर्ण पक्षों पर प्रकाश डालती हैं इनमें तंत्र मंत्र तथा पारलौकिक शक्तियों का भी विस्तार से चित्रण मिलता है स्मरण है कि अपने युग की सामाजिक परिस्थितियों का चित्रण करने में यह गाथाएं सफल रही हैं

धार्मिक और पौराणिक गाथाएं

यद्यपि छत्तीसगढ़ी की  प्रायः सभी गाथाओ में धर्म से संबंधित वर्णन मिलते हैं परंतु फुलवासन  और पंडवानी नामक गाथाओ की धार्मिक और पौराणिक पात्रों को ही लेकर लिखी गई है. इसमें  सीता तथा लक्ष्मण की कथा है जिसमें सीता लक्ष्मण से स्वप्न में देखे गए फुलबासन नामक फुल  लाने का अनुरोध करती है . लक्ष्मण अनेक कठिनाइयों को पार करने के उपरांत पूर्ण काम होकर वापस लौटते हैं . यह गाथा सूफी कवियों के काव्य की याद दिलाती है जिसमें उन्होंने अपने मत विशेष के प्रचार के लिए हिंदुओं की पौराणिक कथाओं का स्वच्छंद नियोजन किया था . ऐसे ही स्वच्छंद दृष्टि पंडवानी की रचना में भी दिखाई देती है. पांडवों की कथा के आलंबन से हरतालिका व्रत या तीजा के अवसर पर द्रोपदी के मायके जाने की सादगी माध्यम से छत्तीसगढ़ी नारी सशक्त आकांक्षा का चित्रण किया गया है .

भक्ति युग ( 1500 से 1900 तक )

इस दौर में छत्तीसगढ़ी में भारत की ही तरह राजनीतिक दृष्टि से उलटफेर होता रहा और हिंदी भाषा की ही तरह छत्तीसगढ़ी में भी इस दौर में भक्ति तथा मुस्लिम आक्रमण को दर्शाने वाली रचनाओं की सृष्टि हुई . मध्य युग की वीर गाथा में फुलकवर देवी गाथा और कल्याण साय की वीर गाथा प्रमुख है. इसके अतिरिक्त गोपाला गीत, राय सिंह के पवारा, ढोला मारो और नागेश्वर कन्या के नाम से लघु कथाएं भी लिखी गई. साथ ही इस दौर में लोरी चंदा व सरवन गीत के नाम से गाथाओं की रचना हुई .

आधुनिक छत्तीसगढ़ी साहित्य (1900 से अब तक)

हिंदी के आधुनिक काल के साहित्य की तरह छत्तीसगढ़ी में भी आधुनिक काल की काव्य साहित्य गद्य साहित्य उपन्यास कहानी निबंध नाटक आदि का सम्यक  विकास हुआ.

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